अगर इन गलतियों को सुधान लिय, तो भारत के अगले PM राहुल ही होंगे

राहुल गांधी की चाची मेनका गांधी ने उन्हें लम्बी उम्र का आशीर्वाद देते हुए कहा कि वे देश के प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं तो बनें, वैसे भी इस देश में प्रधानमंत्री बनने के लिए किसी योग्यता की जरूरत नहीं है।मेनका गांधी ने राहुल गांधी की काबिलीयत पर सवालिया निशान खड़ा कर दिया है! उन्हें लगता है कि भारत के मौजूदा प्रधानमंत्री में भी किसी प्रकार की योग्यता नहीं।उन्हीं की पार्टी का दावा है कि अगर हिम्मत है तो कांग्रेस राहुल को प्रधानमंत्री बनाकर दिखाए, जनता को फौरन पता चल जाएगा कि उनके पास देश चलाने की क्षमता है या नहीं।
आए-दिन उन्हें भावी प्रधानमंत्री के रूप में पेश किया जाता है। जब कभी मंत्रीमंडल में फेर-बदल की बात आती है, तो सवाल उठता है कि क्या इस बार उन्हें कोई मंत्री पद दिया जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं होता और वे कांग्रेस के महासचिव के रूप में ही अपनी भूमिका निभाते आगे बढ़ जाते हैं।
ऐसा महसूस होता है कि हर कांग्रेसी का सपना है कि राहुल जल्द से जल्द प्रधानमंत्री का पद ग्रहण करें, क्योंकि वह पद उन्हीं के लिए सुरक्षित है, मौजूदा प्रधानमंत्री तो बस उसे संभाले हुए हैं। मनमोहन सिंह जैसे दिग्गज और काबिल प्रधानमंत्री के रहते हुए और बिना किसी आंतरिक मतभेद के अगर किसी दूसरे व्यक्ति का नाम प्रधानमंत्री के पद के लिए उछाला जाता रहे, तो यह सचमुच उस प्रधानमंत्री की गरिमा पर कुठाराघात है। लेकिन कांग्रेस के भीतर ऐसा होता रहता है। प्रणव मुखर्जी से लेकर दिग्विजय सिंह जैसे कद्दावर नेता किसी न किसी रूप में राहुल को भावी प्रधानमंत्री के रूप में पेश करते हुए गौरव महसूस करते हैं। लेकिन वे पूरी विनम्रता से यह जरूर कहते हैं कि राहुल को देश का प्रधानमंत्री बनना है या नहीं इसका फैसला तो वे खुद करेंगे यानी वे जब चाहें प्रधानमंत्री बन सकते हैं हम सब तैयार हैं!
दिग्विजय सिंह को लगता है कि सामाजिक एवं राजनीतिक मुद्दों पर अच्छी समझ रखनेवाले राहुल परिपक्व हो गए हैं। उनमें नेतृत्व करने की सारी खूबियां हैं। कई अन्य नेताओं ने दिग्विजय सिंह की बातें दोहराई हैं और उन्हें लगता है कि सोनिया गांधी के बेटे राहुल में प्रधानमंत्री बनने के सारे गुण हैं। कांग्रेस नेता शकील अहमद ने कहा कि अधिकांश पार्टी कार्यकर्ता महसूस करते हैं कि राहुल में अच्छे नेता बनने की क्षमता है। वरिष्ठ कांग्रेस नेता एवं पार्टी के कोषध्यक्ष मोतीलाल वोरा की नजर में राहुल देश को विकास के रास्ते पर ले जाने की क्षमता रखते हैं। वे दृष्टि सम्पन्न हैं।
पूर्व केंद्रीय मंत्री अर्जुन सिंह ने 2009 के लोकसभा चुनाव से पहले राहुल को प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के तौर पर पेश करने की मांग उठाई थी, लेकिन पार्टी नेतृत्व ने उनकी मांग ठुकरा दी थी। उनके द्वारा बोया गया बीज अब वट वृक्ष बन चुका है। हर एक कांग्रेसी नेता गाहे-बगाहे अपनी ख्वाहिश जाहिर करता रहता है कि राहुल को प्रधानमंत्री बना दिया जाए, हालांकि यह कहते हुए वे जरा भी झेंपते नहीं कि उन्हीं की पार्टी का एक विरिष्ठ नेता प्रधानमंत्री के पद पर बैठा हुआ है।
कांग्रेस की बातें और नीतियां कांग्रेस जाने, लेकिन देश को तो सोचना होगा कि क्या राहुल सचमुच हमारे प्रधानमंत्री बनने लायक हैं, क्या सचमुच उनमें इतनी क्षमता है कि वे देश, विदेश, रक्षा, वित्त, गृह विभागों से जुड़े मुद्दों को संभाल सकते हैं? क्या वे इतने जिम्मेदार हैं कि हजारों समस्याओं, परिशानियों से दो-चार हो रहे इस देश को बिना घबराए आगे ले चलेंगे? क्या विदेशों में जाकर वहां दिग्गजों से मिलकर अपनी बात कहने की सलाहियत उनमें है? क्या वे देश की गरीबी दूर करने के लिए नई योजनाओं की अगुवाई कर सकते हैं? क्या वे राजनीति के दलदल में फंसे राजनेताओं के बीच अपनी अलग छवि बना सकते हैं? क्या वे कृषि और नई तकनीक के बीच की खाई पाट सकते हैं? एक ओर अंधविश्वासों से घिरे और दूसरी ओर विज्ञान और तकनीक में विश्व भर में अपनी धाक जमाते देश की दो अलग-अलग प्रकृतियों के बीच क्या वे संतुलन बना सकते हैं?
क्या राहुल गांधी पाकिस्तान से भारत के रिश्तों को दिशा दे सकते हैं? क्या वे चीन की कूटनीति का जवाब दे सकते हैं? क्या वे अमेरिका के सामने डटकर खड़े रह सकते हैं? क्या वे रूस को आज भी अपना सबसे अच्छा दोस्त कह सकते हैं? क्या वे पड़ोसी देशों से तालमेल बैठा सकते हैं?
राहुल अभी तक कई मुद्दों पर अपनी राय नहीं बना पाए हैं, यह सच है। ऐसा लगता है कि वे वही करते हैं जो उनसे कहा जाता है या फिर एक बार में एक ही काम करते हैं, जैसे कोई किसी प्रोजेक्ट पर काम करता हो। वे कई मुद्दों पर स्वतंत्र सोच बना नहीं पाए हैं, ऐसा लगता है। क्योंकि वे हर मुद्दे पर नहीं बोलते। लोकपाल विधेयक के मुद्दे पर वे चुप रहे, बाबा रामदेव के मुद्दे पर उन्होंने कुछ भी नहीं कहा, हालांकि इस बीच वे उत्तर प्रदेश की राजनीति में किसानों की मदद से कुछ खंगालते नजर आए। वे भ्रष्टाचार पर खूब बोलते हैं और कहते हैं कि युवा ही इसे खत्म कर सकते हैं, लेकिन काले धन पर कुछ नहीं कहते।
राहुल ने एक युवा होने के नाते पिछले सात बरसों में देश भर में भ्रमण कर युवाओं को अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास किया। वे कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में सभाएं लेने लगे और सन 2009 के चुनावों के दौरान उन्होंने केवल छह सप्ताह में ही 125 रैलियों को सम्बोधित किया और भारी भीड़ भी खींची।
लेकिन भीड़ को आकर्षित तो हर मशहूर हस्ती करती है। चाहे वे अमिताभ हों, शाहरुख हों या फिर ऐश्वर्य राय। लेकिन राहुल का काम तो उससे आगे जाता है। उन्हें ठोस जमीन पर खड़े होकर हर मुद्दे पर खुलकर बोलना होगा और अपने विचार रखने होंगे। देश को बताना होगा कि वे अगर प्रधानमंत्री बनते हैं तो देश को किस दिशा में ले जाएंगे। एक साफ, स्पष्ट भविष्य दिखाने की क्षमता उनमें होनी चाहिए।
सन 2014 में जब लोकसभा के चुनाव आएंगे तो पूरे कयास हैं कि राहुल गांधी को देश का प्रधानमंत्री बनाकर पेश किया जाए।लेकिन क्या यह सही है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मंत्रिमंडल में किसी भी मंत्रालय की जिम्मेदारी नहीं संभालनेवाले राहुल को देश का प्रधानमंत्री पद ही सौंप दिया जाए?सन 2004 से सांसद बने राहुल ने अब तक किसी मंत्रालय का कार्यभार क्यों नहीं संभाला? इंदिरा गांधी भी तो प्रधानमंत्री बनने से पहले लाल बहादुर शास्त्री के मंत्रिमंडल में मंत्री हुआ करती थीं। हां, यह और बात है कि अचानक राजनीति में आनेवाले राजीव गांधी पायलट की नौकरी करते-करते सीधे प्रधानमंत्री बन गए थे।
शायद यहां भी ऐसा हो! ऐसा हो सकता है। हो चुका है। तो अब क्यों न हो!लेकिन आज इस लोकतांत्रिक युग में क्या किसी देश को अपने प्रधानमंत्री से हर वह उम्मीद नहीं करनी चाहिए जो देश को तरक्की की राह पर ले जाए? क्या हर देशवासी को यह हक नहीं है कि वह सबसे काबिल, योग्य, समझदार, जिम्मेदार और समर्पित नेता को देश का प्रधानमंत्री चुने?क्या सबसे बड़े राजनीतिक परिवार या देश को तीन प्रधानमंत्री देनेवाले परिवार की संतान के रूप में पैदा होना ही प्रधानमंत्री बनने की योग्यता हो सकती है?
अगर नहीं, तो फिर राहुल गांधी को जल्द से जल्द यह साबित करना होगा कि वे इसलिए प्रधानमंत्री नहीं बने हैं कि सत्ता उन्हें विरासत में मिली है, बल्कि इसलिए बने हैं कि उनमें काबिलियत है, योग्यता है और वे देश की बागडोर संभालने में सक्षम हैं। उन्हें दिखाना होगा कि वे हर तरह के निर्णय लेने में सक्षम हैं। उन्हें अपने अनुभव बढ़ाने होंगे, जिसके लिए उन्हें किसी मंत्रालय की जिम्मेदारी संभालनी होगी, देश के आम लोगों के साथ केवल यात्राएं कर या उनके घर में कुछ समय बिताकर नहीं, बल्कि पूरी जिंदगी भर के लिए उन्हें खुशियां देने का इंतजाम उन्हें करना होगा, उन्हें देश की राजनीति में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेना होगा और लगातार मेहनत करनी होगी, उन्हें साबित करना होगा कि वे सचमुच देश की बागडोर संभालने लायक हैं।
अगर कांग्रेसी नेता कहते हैं कि प्रधानमंत्री बनना न बनना राहुल के हाथ में है, तो फिर राहुल को ही यह फैसला करना होगा कि वे खुद इस पद के लायक हैं या नहीं।लेकिन देश को भी फैसला करना होगा कि क्या वह वाकई राहुल गांधी को देश के भावी प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहता है।क्या वह राजनीतिक विरासत को किसी प्रधानमंत्री की योग्यता मानता है या उसकी अपनी योग्यता के बल पर उसे चुना जाना चाहिए? नोट – प्रत्येक फोटो प्रतीकात्मक है (फोटो स्रोत: गूगल) [ डिसक्लेमर: यह न्यूज वेबसाइट से मिली जानकारियों के आधार पर बनाई गई है. EkBharat News अपनी तरफ से इसकी पुष्टि नहीं करता है. ]