90% लोग नहीं जानते इस चम्बल के सबसे शातिर डाकू माधो सिंह की कहानी | देखिए video

माधो सिंह, 1960 और 1972 के बीच चंबल के डकैतों में से एक बड़ा नाम था। माधो सिंह ने 1972 के अप्रैल में करीब पांच सौ डाकुओं के साथ आत्मसमर्पण कर दिया था। आज कहानी चंबल के उस डकैत की जो कभी फौजी हुआ करता था। लेकिन जिंदगी ने ऐसे करवट ली कि उसने बंदूक थामी और फिर चंबल के डकैतों के अपराध इतिहास में अपना नाम भी दर्ज करा बैठा। दरअसल, इस डकैत का नाम माधो सिंह था। लोग उसे बीहड़ का रॉबिनहुड भी करार देते थे, लेकिन माधो सिंह पर दस्यु जीवन में 23 कत्ल और 500 अपहरण के मामले दर्ज थे।
माधो सिंह का जन्म आगरा के बघरेना गांव में हुआ था। पिता ने जन्माष्टमी के दिन जन्म के चलते नाम माधव सिंह रखा, लेकिन बोलचाल में वह नाम माधो सिंह में बदल गया। माधो सिंह बड़ा हुआ और फिर 1954 के आसपास सेना में बतौर हवलदार भर्ती हो गया। जहां उसने मेडिकल कोर में कंपाउंडर पद पर सेवा दी। माधो सिंह 1959 में छुट्टी पर गांव आया तो गांव के कुछ दबंगों ने उस पर केस दर्ज करवा दिया। इसके बाद उसे सेना से इस्तीफ़ा देना पड़ा और फिर गांव में ही रहा।
फिर उसने एक दवाखाना खोला और लोगों का इलाज शुरू किया। बताया जाता है कि इसी दौरान माधो सिंह की मुलाकात डाकू मोहर सिंह से हुई। पुरानी दुश्मनी से तंग माधो सिंह ने साल 1960 में मोहर सिंह का साथ लिया और बीहड़ों का बागी बन गया। फिर कुछ दिनों बाद माधो सिंह ने अपने ही गांव के दो लोगों को मौत के घाट उतार दिया, जिनसे उनकी दुश्मनी थी। इसके बाद माधो सिंह ने पीछे मुड़कर ही नहीं देखा। हालांकि, साल 1965 में डाकू मोहर की मौत बाद वह शांत रहा था।
इसके बाद साल भर के अंदर ही माधो सिंह ने अपना गैंग उत्तरप्रदेश के साथ मध्यप्रदेश और राजस्थान के इलाकों में भी फैला दिया। उस दौरान माधो की गैंग में दर्जनों रायफल और हथियार हुआ करते थे। साल 1972 में माधो सिंह पर सरकार ने डेढ़ लाख का इनाम घोषित कर दिया। लेकिन साल 1971 में पुलिस मुठभेड़ में उसके दर्जन भर भरोसेमंद साथी मारे गए तो उसका मन बीहड़ों से हटने लगा। इन 11 सालों के दौरान माधो के नाम करीब 23 हत्याएं और 500 अपहरण दर्ज थे।
आखिर में माधो सिंह ने अपने संपर्कों के जरिए लोकनायक जयप्रकाश नारायण से बात की और साल 1972 के अप्रैल में करीब पांच सौ डाकुओं के साथ आत्मसमर्पण कर दिया। सरेंडर करने के बाद माधो सिंह को जेल हो गई। सजा पूरी होने के बाद वह लोगों को जादू का खेल दिखाने लगा। फिर 10 अगस्त, साल 1991 को लंबी बीमारी के बाद माधो सिंह की मौत हो गई। नोट – प्रत्येक फोटो प्रतीकात्मक है (फोटो स्रोत: गूगल) [ डिसक्लेमर: यह न्यूज वेबसाइट से मिली जानकारियों के आधार पर बनाई गई है. EkBharat News अपनी तरफ से इसकी पुष्टि नहीं करता है. ]