Maldives में Indian Army का सबसे बड़ा OPERATION

आज दुनिया के एक हिस्से में रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध छिड़ा हुआ है। बाकी देशों की निगाह इस समय उसी ओर टिकी है। कुछ ऐसे ही संकट पहले भी दुनिया के सामने आए लेकिन जब कभी भी हैरतअंगेज सैन्य अभियानों की बात आएगी तो भारत का नाम उनमें शामिल होगा। साल 1988 में मालदीव में जब तख्तापलट की योजना बनाई गई थी, जिसमें तत्कालीन राष्ट्रपति मौमून अब्दुल गय्यूम संकट में घिर गए थे। तब भारतीय सेना ने “ऑपरेशन कैक्टस” के जरिए अपना दम दिखाया था।
मालदीव में साल 1988 में पीपल्स लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन ऑफ तमिल ईलम (PLOTE) के आतंकियों ने पर्यटकों के भेष में मालदीव में हमला कर दिया था। इस तख्तापलट की योजना मालदीव के अप्रवासी कारोबारी अब्दुल्लाह लुथफ़ी और अहमद सगरू नासिर ने प्लोटे आतंकियों से साथ मिलकर बनाई गई थी। जिसे प्लोटे के नेता उमा महेश्वरन का समर्थन प्राप्त था। इसके बाद पूरे शहर में प्लोटे के हथियार बंद आतंकी फैल गए थे और उन्होंने मालदीव के प्रमुख सरकारी भवन, एयरपोर्ट, बंदरगाह और टेलिविजन स्टेशन पर कब्ज़ा जमा लिया था।
माना जा रहा था कि यह सभी लड़ाके राष्ट्रपति अब्दुल गय्यूम को निशाना बनाना चाह रहे थे, लेकिन उस वक्त गय्यूम ने नेशनल सिक्यूरिटी सर्विस हेडक्वाटर में पनाह ली। इस भारी संकट के बीच मालदीव की सरकार ने पाकिस्तान, यूएस, ब्रिटेन, श्रीलंका जैसे कई देशों से मदद मांगी लेकिन अंत समय में भारत सरकार ने उनकी मदद करने की ठानी। यह भारतीय सेना का पहला विदेशी मिशन था और राजीव गांधी उस वक्त देश के प्रधानमंत्री थे।
3 नवंबर 1988 की रात भारतीय वायुसेना और थल सेना ने ‘ऑपरेशन कैक्टस’ लांच किया। नौ घंटे की लगातार उड़ान के बाद करीब तीन सौ जवान हुलहुले एयरपोर्ट जा पहुंचे, यह हवाई अड्डा माले की सेना के कंट्रोल में था। इसके बाद बड़ी ही चतुराई से भारतीय टुकड़ी राजधानी माले में दाखिल हुई। फिर माले एयरपोर्ट को कब्जे में लेकर राष्ट्रपति अब्दुल गय्यूम को सुरक्षित जगह पर पहुंचाया। इसके बाद आखिरी काम नौसेना के युद्धपोत गोदावरी और बेतवा ने कर दिया।
इन युद्धपोतों ने समुद्र में आतंकियों के जहाजों के आगे और पीछे से लंगर डालकर सप्लाई लाइन को काट दिया लेकिन भागते आतंकियों ने यहां एक जहाज अगवा कर लिया। इसके कुछ देर बाद मरीन कमांडों ने कार्रवाई में 19 आतंकी ढेर कर दिए पर दो बंधकों की जान चली गई। भारतीय सेना की मौजूदगी से आतंकियों का मनोबल टूट गया और फिर माले शहर सहित अन्य जगहों को आतंकियों से मुक्त करा लिया गया।
बता दें कि, भारतीय सेना का यह पहला विदेशी सैन्य अभियान था जिसमें उसे हालातों कि बहुत कम जानकारी थी। हालांकि, दो दिनों के बाद सेना ने इस संकट को ख़त्म कर अभियान पूरा कर लिया। जब “ऑपरेशन कैक्टस” ख़त्म हुआ तो संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका और ब्रिटेन समेत कई देशों ने भारतीय सेना के पराक्रम और भारत सरकार की रणनीति की तारीफ की थी। यह सैन्य अभियान आज भी दुनिया के सबसे सफल ऑपरेशनों में गिना जाता है। नोट – प्रत्येक फोटो प्रतीकात्मक है (फोटो स्रोत: गूगल) [ डिसक्लेमर: यह न्यूज वेबसाइट से मिली जानकारियों के आधार पर बनाई गई है. EkBharat News अपनी तरफ से इसकी पुष्टि नहीं करता है. ]