कैसे लोहे को सोने में बदल देता है पारस पत्थर ? क्या है पारस पत्थर का राज ? देखिए video

आप सभी ने पारस पत्थर के बारे में सुना ही होगा पारस पत्थर एक ऐसा पत्थर है जिसके स्पर्श से लोहे की वस्तु क्षणभर में सोने में बदल जाती है। पारस पत्थर का जिक्र पौराणिक ग्रंथो और लोककथाओं में भी मिलता है। पारस पत्थर के सम्बन्ध में अनेको किस्से कहानिया समाज में प्रचलित है। कई लोग यह दावा भी करते है की उन्होंने पारस पत्थर को देखा है। पारस पत्थर की प्रसद्धि और लोगो में इसके होने को लेकर इतना विश्वास है की भारत में कई ऐसे स्थान है जो ‘पारस’ के नाम से जाने जाते है । कुछ लोगो के आज भी पारस नाम होते है ।
टिटहरी पक्षी जानता है पारस पत्थर के बारे में
कुछ लोगो मानना है की टिटहरी पक्षी के अंडे बहुत कठोर होते है बाकि पक्षियों की तरह उससे बच्चे बाहर नहीं निकलते । अपने बच्चो को बाहर निकालने के लिए टिटहरी पक्षी पारस पत्थर की खोज करती है और अपने अंडो को इसी पारस पत्थर से फोड़कर अपने बच्चो को बाहर लाती है।
पारस पत्थर से जुडी कहानियां
शास्त्रो की कहानिया बताती है कि हिमालय के जंगलो में बड़ी आसानी से पारस पत्थर मिल जाता है बस कोई व्यक्ति उनकी पहचान करना जानता हो । कहानियों के अंदर जिक्र आता है कि कई संत पारस पत्थर खोजकर लाते थे और अपने भक्तो को दे देते थे । यह पारस पत्थर हिमालय के आस पास ही पाया जाता है । हिमालय के साधु संत ही जानते है कि पारस पत्थर को कैसे ढूढ़ा जाये। ऐसा भी कहां जाता है कि प्राचीन भारतीय रसायनाचार्य नागार्जुन ने पारे को सोने में बदलने कि तरकीब विकसित कि थी उन्होंने ही पारस पत्थर बनाया था । हालांकि झारखंड के गिरिडीह इलाके के पारसनाथ जंगल में आज भी लोग पारस मणि कि खोज करते रहते है ।
रायसेन किले में मौजूद है पारस पत्थर
भोपाल के पास एक किला है ये किला भोपाल से 50 किलोमीटर दूर एक पहाड़ी कि चोटी पर बना हुआ है इस किले का नाम है ‘रायसेन का किला’ । कहते है कि इस किले के अन्दर पारस पत्थर मौजूद है उस पारस पत्थर को राजा से लेने के लिए यहाँ पर कई युद्ध हुए ऐसा ही एक युद्ध राजा रायसेन ने लड़ा । वो उस युद्ध में हार गए अब वो पत्थर किसी और के हाथ में न चला जाये इसलिए उन्होंने उसको किले के अंदर ही तालाब में फेक दिया आखिर में युद्ध के दौरान ही राजा कि मृत्यु हो गई । मरने से पहले उन्होंने पारस पत्थर के बारे में किसी को नहीं बताया ।
उनकी मृत्यु के बाद ये किला वीरान हो गया । इसके बाबजूद उस पारस पत्थर को ढूढ़ने उस किले में बहुत से लोग गए । ऐसा भी कहा जाता है कि जो भी किले में पत्थर को ढूढ़ने जाता है उसका मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है इसके पीछे का कारण बताया गया क्योकि उस पत्थर की रखवाली जिन्न करते है यही बजह है की उसको ढूढ़ने के लिए जाने वाला हर इंसान मानसिक संतुलन खो देता हैं । कहते है अब इस काम के लिए सिर्फ तांत्रिको की ही मदद ली जाती है ।
दिन में इस किले को लोगों के लिए खोल दिया जाता है दिन में यहाँ लोग घूमने के लिए आते है वही रात होते ही यहाँ खुदाई का काम शुरू हो जाता है । इस खुदाई की बात का सबूत किले में अगले दिन बड़े बड़े गडढे देखने को मिलते है । फ़िलहाल यहाँ पारस पत्थर और जिन्न के बारे में अभी तक कोई सबूत नहीं मिला है पुरातत्व विभाग अभी इस मामले में खोज कर रहा है।
आज तक इस रहस्य को कोई नहीं जान पाया और जिसने जाना वह इस दुनिया मे नहीं हैं परन्तु कहते है कि पारस पत्थर की खोज अब तक जारी है। एटॉमिक संरचना की मानी जाए तो कोई ऐसा पत्थर नहीं होता है जो लोहे को सोना बना दे यह काले रंग का सुगन्धित पत्थर है तथा ये दुर्लभ होता है। यह पत्थर बहुमूल्य है इसके होने से सकारात्मक ऊर्जा में वृद्धि होती है नकारात्मक ऊर्जा कम होती है यह जहां हो वहां किसी चीज की कमी नहीं होती हैं । किवदंती के अनुसार 13 वी सदी के वैज्ञानिक और दार्शनिक अल्बर्ट मागनुस ने पारस पत्थर की खोज की थी। नोट – प्रत्येक फोटो प्रतीकात्मक है (फोटो स्रोत: गूगल) [ डिसक्लेमर: यह न्यूज वेबसाइट से मिली जानकारियों के आधार पर बनाई गई है. EkBharat News अपनी तरफ से इसकी पुष्टि नहीं करता है. ]