भारत के लोग मोटे क्यों होते जा रहे हैं? देखिए video

कभी मोटापा पश्चिमी देशों की समस्या माना जाता था लेकिन हाल के सालों में ये निम्न और मध्यम आय वाले देशों में फैल रहा है. खासकर भारत में ये तेज़ी से बढ़ रहा है. लंबे समय से कुपोषित और कम वजन वाले लोगों के देश के रूप में देखे जाने वाला भारत पिछले कुछ सालों में मोटापे के मामले में शीर्ष पांच देशों में पहुंच गया है. एक अनुमान के मुताबिक 2016 में 13.5 करोड़ भारतीय अधिक वज़न या मोटापे की समस्या से जूझ रहे थे. स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि ये संख्या तेज़ी से बढ़ रही है और देश की कुपोषित आबादी की जगह अधिक वज़न वाले लोग ले रहे हैं. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण(एनएफएचएस-5) के अनुसार लगभग 23 प्रतिशत पुरुषों और 24 प्रतिशत महिलाओं का बॉडी मास इंडेक्स 25 पाया गया है. जो साल 2015-16 से 4 प्रतिशत ज़्यादा है.
आंकड़ों से ये भी पता चलता है कि साल 2015-16 में पांच साल से कम उम्र के 2.1 प्रतिशत बच्चों का वज़न ज़्यादा था. ये संख्या नए सर्वेक्षण में बढ़कर 3.4 प्रतिशत हो गई है. चेन्नई के एक सर्जन और ओबेस्टी फाउंडेशन ऑफ इंडिया के फाउंडर डॉ रवींद्रन कुमेरन चेतावनी देते हुए कहते हैं, “हम भारत और विश्व स्तर पर मोटापे की बीमारी से जूझ रहे हैं और मुझे डर है कि अगर हम जल्द ही इस पर ध्यान नहीं देंगे तो यह महामारी बन जाएगी.”
डॉ कुमेरन इसके पीछे सुस्त जीवनशैली और सस्ते वसायुक्त खाद्य पदार्थों का आसानी से मिलना मुख्य वजह बताते हैं. इसके चलते ही ज़्यादातर लोग, खासकर शहरी भारत के लोग अपने आकार से बाहर हो गए हैं. बीएमआई लोगों को सामान्य, अधिक वज़न, मोटापा और गंभीर रूप से मोटापा में वर्गीकृत करने के लिए विश्व स्तर पर सबसे स्वीकृत मानक है. इसमें किसी व्यक्ति की ऊंचाई और वजन को ध्यान में रखकर गणना की जाती है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 25 या उससे अधिक के बीएमआई को अधिक वज़न माना जाता है.
लेकिन डॉ. कुमेरन और कई अन्य स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि दक्षिण एशियाई आबादी के लिए, इसे हर चरण में कम से कम दो अंक कम समायोजित करने की आवश्यकता है क्योंकि हम “केंद्रीय मोटापे” से ग्रस्त हैं. इसका मतलब है कि हमारे पेट पर आसानी से चर्बी बढ़ती है. पेट पर चर्बी बढ़ना, शरीर के किसी हिस्से के वज़न बढ़ने से अधिक ख़तरनाक है. इससे ये समझा जा सकता है कि 23 बीएमआई वाला भारतीय अधिक वज़न वाला होगा.
अगर आप अधिक वज़न के लिए कट-ऑफ पॉइंट के रूप में 23 लेते हैं, तो मुझे लगता है कि भारत की आधी आबादी, निश्चित रूप से शहरी आबादी अधिक वज़न वाली होगी.” डब्ल्यूएचओ के अनुसार, शरीर में बहुत अधिक वसा नॉन कम्युनिकेबल बीमारियों के जोखिम को बढ़ाता है. इससे 13 तरह के कैंसर, टाइप-2 मधुमेह, हृदय की समस्याएं और फेफड़ों के मामले शामिल हैं. पिछले साल मोटापे से दुनियाभर में 28 लाख मौतें हुई हैं.
इंटरनेशनल फेडरेशन फॉर द सर्जरी ऑफ ओबेसिटी एंड मेटाबोलिक डिसऑर्डर (आईएफएसओ) के पूर्व अध्यक्ष डॉ प्रदीप चौबे कहते हैं, “हर 10 किलो अतिरिक्त वज़न तीन साल तक जीवन को कम कर देता है. इसलिए अगर किसी व्यक्ति का वज़न 50 किलो अधिक है तो वह अपनी ज़िंदगी के 15 साल कम कर देता है. हमने ये भी देखा है कि अधिक वज़न और मोटे रोगियों की कोविड के दौरान मृत्यु दर तीन गुना अधिक थी.” डॉ प्रदीप चौबे ने 20 साल पहले भारत में बेरिएट्रिक सर्जरी का बीड़ा उठाया था. ये सर्जरी 40 या उससे अधिक बीएमआई वाले ख़तरनाक रूप से मोटे लोगों के इलाज के लिए अंतिम उपाय के रूप में इस्तेमाल की जाती है.
डॉ चौबे कहते हैं कि मोटापे के चिकित्सा प्रभाव के बारे में सब जानते हैं लेकिन इसके मनोवैज्ञानिक और सामाजिक प्रभावों के बारे में कम बात होती है. “हमने तीन साल पहले एक हज़ार व्यक्तियों का एक सर्वेक्षण किया था और हमने पाया कि अधिक वज़न का यौन स्वास्थ्य पर असर पड़ता है. इससे खुद की छवि को लेकर बुरा लगता है जो व्यक्ति के दिमाग को प्रभावित करती है और ये शादीशुदा ज़िंदगी में असंतोष का जन्म दे सकती है.”इस बात को 56 साल के अभिनेता सिद्धार्थ मुखर्जी से बेहतर कोई नहीं जानता, जिनकी 2015 में बेरिएट्रिक सर्जरी हुई थी.
वे एक एथलीट थे जिनका कुछ साल पहले तक वज़न 80-85 किलोग्राम था, जब एक दुर्घटना ने उनके खेल करियर का अंत कर दिया. उन्होंने बताया, मेरा खाना पीना एक खिलाड़ी की तरह था. मैंने बहुत तेल, मसालेदार भोजन खाया. मुझे पीने भी मजा आता था, इसलिए मैंने अपना वज़न बढ़ा लिया और ये 188 किलोग्राम तक पहुंच गया था.” ऐसी स्थिति में उन्हें मधुमेह, हाई कोलेस्ट्रॉल और थायराइड की समस्याएं होने लगीं. साल 2014 में एक छुट्टी के दौरान उन्हें अचानक सांस लेने में कठिनाई होने लगी. उन्होंने बताया, “मैं लेटे हुए सांस नहीं ले सकता था इसलिए मुझे बैठे बैठे सोना पड़ा, लेकिन डॉ चौबे ने मुझे एक नया जीवन दिया है. मेरा वज़न घटकर अब 96 किलोग्राम हो गया है. मैं अपनी बाइक चलाता हूं, मंच पर अभिनय करता हूं और छुट्टियों पर जाता हूं.”
एक समय था जब अभिनेता सिद्धार्थ मुखर्जी सीढ़ियों पर नहीं चढ़ पाते थे लेकिन अब वे एक दिन में 17 से 18 किलोमीटर पैदल चल सकते हैं. वे बताते हैं, “अब मैं मिठाई खा सकता हूं, फैशनेबल कपड़े पहन सकता हूं.” नोट – प्रत्येक फोटो प्रतीकात्मक है (फोटो स्रोत: गूगल) [ डिसक्लेमर: यह न्यूज वेबसाइट से मिली जानकारियों के आधार पर बनाई गई है. EkBharat News अपनी तरफ से इसकी पुष्टि नहीं करता है. ]