भारत कि राष्ट्रवादी क्रांतिकारी देखिये video

क्रांतिकारी राष्ट्रवादी आंदोलन

भारत की राजनीति में क्रांतिकारी राष्ट्रवादी आंदोलन का उदय लगभग उसी समय हुआ जब कांग्रेस के अंदर गरम दल का उदय हुआ था। क्रांतिकारी अतिवाद के उदय और विकास के पीछे भी वही कारण और परिस्थितियां कार्य कर रही थीं जो गरमपंथ के उदय के लिए जिम्मेदार थीं।

विचारधारा एवं कार्यप्रणाली

क्रांतिकारियों का विश्वास था कि विदेशी शासन भारतीय संस्कृति के श्रेष्ठ तत्वों को समाप्त कर देगा तथा पश्चिम की अच्छी बातों को भी यहां स्वेच्छा से या शांतिपूर्ण उपायों से कभी लागू नहीं करेगा। उनका यह भी मानना था कि ब्रिटिश साम्राज्यवाद को केवल हिंसक लड़ाई के द्वारा जल्द से जल्द भारत से समाप्त किया जा सकता है। इसलिए उन्होंने बम और पिस्तौल की राजनीति को वरीयता दी। आयरलैंड के क्रांतिकारियों के नमूने पर गुप्त सभाओं के आयोजन किए जाते थे जहां नवयुवकों को देश हित के लिए दीक्षित किया, उन्हें हथियार बांटे तथा हथियार चलाने और बम बनाने का प्रशिक्षण दिया। बदनाम यूरोपीय अधिकारियों की हत्या करके स्वतंत्रता के विरोधियों में भय उत्पन्न करना तथा उनका मनोबल तोड़ना इनका उद्देश्य था। इनका यह भी खयाल था कि बड़े पैमाने पर राजनीतिक हत्याएं करने से सशस्त्र क्रांति के लिए उपयुक्त माहौल बनेगा।

क्रांतिकारी आतंकवाद Revolutionary Terrorism | Vivace Panorama

कुछ ऐसे भी क्रांतिकारी दल हुए जिनका कार्यक्रम अधिक व्यापक था। वे सेना में विद्रोह और किसानों में बगावत कराना चाहते थे। अपने उद्देश्यों​ की पूर्ति के लिए हत्या करना, डाका डालना, बैंक, पोस्ट आफिस, रेलगाड़ी, शस्त्रागार आदि लूटना सब कुछ जायज था। यद्यपि इन क्रांतिकारियों ने मैजिनी, गैरीबाल्डी आदि विदेशी राष्ट्रनायकों की क्रियाविधियों का अनुसरण किया; लेकिन देश हित में अपना सर्वस्व बलिदान करने की इनकी अंत: प्रेरणा विशुद्ध भारतीय थी।क्रांतिकारी, विशेषकर बंगाल के, शक्तिपूजा से प्रेरणा ग्रहण करते रहे। यह सिर्फ संयोग नहीं है कि इन्होंने भारत राष्ट्र को भी शक्ति की प्रतीक सिंहवाहिनी मां दुर्गा के रूप में कल्पित किया। इस प्रकार इन्होंने महाशक्ति भवानी-माता का भारत माता से एकाकार कर लिया।पश्चिमी भारत में क्रांतिकारी आंदोलन

तिलक और चाफेकर बंधु

1897 में पूना में प्लेग फैला। सरकारी राहत कार्य दुखद रूप से अपर्याप्त था। प्लेग अधिकारी रैंड से जनता त्रस्त थी। तिलक अपने समाचार पत्र मराठा में सरकार के बचाव कार्य को प्लेग से भी अधिक दुखदायक बताया। 15 जून, 1897 को अपने मराठी पत्र केसरी के एक लेख में उन्होंने लिखा : ‘ निष्काम भाव से की गई (राजनीतिक) हत्या का भी कोई कर्मफल नहीं होता यह गीता का उपदेश है जो दंड संहिता से सर्वथा ऊपर है।’ संभवतः इसी लेख से प्रेरित होकर पूना के चाफेकर बंधु, दामोदर और बालकृष्ण ने 22 जून 1897 को रैंड की गोली मारकर हत्या कर दी जिसमें उसके साथ के सैनिक अधिकारी आयर्स्ट या एयर्स्ट की भी मृत्यु हो गई। चाफेकर बंधुओं को फांसी की सजा दी गई तथा तिलक को 18 महीनों की जेल हुई।

अंग्रेजो से भारत को मुक्ति दिलाने वाले महानायक जो अपने लिए नहीं आने वाली पीढ़ियों के लिए लड़े

श्यामजी कृष्ण वर्मा

श्यामजी कृष्ण वर्मा काठियावाड़ गुजरात के निवासी थे। उस समय काठियावाड़ बंबई प्रांत में आता था। वह कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से पास आउट बैरिस्टर थे। परंतु भारत में अंग्रेजों के रवैए से तंग आकर देश की स्वतंत्रता के लिए काम करने का निश्चय किया। श्यामजी कृष्ण वर्मा ने 1905 में लंदन में इंडिया होमरूल सोसायटी का गठन किया। इसका कार्यालय इंडिया हाउस के नाम से प्रसिद्ध हुआ। श्याम जी ने इंडियन सोशियोलॉजिस्ट नामक एक मासिक पत्रिका भी शुरू किया। वी डी सावरकर, लाला हरदयाल, मदनलाल धींगरा जैसे क्रांतिकारी श्याम जी कृष्ण वर्मा के इंडिया हाउस से जुड़े।

विनायक दामोदर सावरकर ने मैजिनी के यंग इटली के तर्ज पर 1904 में नासिक में मित्र मेला नामक एक संस्था बनाई। बाद में मित्र मेला ही अभिनव भारत के नाम से प्रसिद्ध हुआ। 1906 सावरकर इंडिया हाउस के फेलोशिप पर पढ़ाई करने लंदन आए। 1908 में इंडिया हाउस में 1857 के विद्रोह की स्वर्ण जयंती मनाई गई। वी डी सावरकर ने 1857 के विद्रोह को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम कहा। उन्होंने अपने विचारों को द इंडियन वार आफ इंडिपेंडेंस में व्यक्त किया।
उन दिनों ब्रिटिश सरकार के भारत कार्यालय (इंडिया आफिस जो लंदन में था) में कर्नल विलियम कर्जन वाइली राजनीतिक मामलों का सहायक था। 1909 में मदन लाल धींगरा ने कर्जन वाइली की गोली मारकर हत्या कर दी। धींगरा और सावरकर पकड़े गए। धींगरा को फांसी की सजा दी गई और सावरकर को आजीवन काला पानी की सजा दी गई। श्याम जी कृष्ण वर्मा को इंडिया हाउस बंद करना पड़ा और वे पेरिस चले गए।

राष्ट्रीय आन्दोलन 1905-1919 ई. National Movement 1905-1919 AD. | Vivace Panorama

बंगाल के क्रांतिकारी

बंगाल​ में क्रांतिकारी आंदोलन की शुरुआत भद्रलोक समाज से हुआ। अनुशीलन समिति क्रांतिकारियों की प्रथम गुप्त संस्था थी, जिसका गठन 1902 में हुआ। मिदनापुर में अनुशीलन समिति का गठन ज्ञानेंद्रनाथ बसु ने किया था इसके बाद पी. मित्रा ने कलकत्ता में अनुशीलन समिति का गठन किया। जतींद्रनाथ बनर्जी और बारींद्र कुमार घोष कलकत्ता अनुशीलन समिति के सदस्य थे। 1905 में बारींद्र कुमार घोष ‘भवानी मंदिर’ नाम से एक पुस्तिका लिखी। क्रांतिकारी गतिविधियों को संगठित करने के बारे में इस पैम्फलेट में प्रकाश डाला गया था। इसके बाद उन्होंने Rules of Modern Warfare (वर्तमान रण-नीति के नियम) पुस्तिका लिखी। बंगाल में क्रांतिकारियों की हिंसक गतिविधियां 1906 से आरंभ हुईं, जब क्रांतिकारी समूहों के लिए धन की व्यवस्था करने के लिए डकैतियों के षड्यंत्र बने। 1907 में पूर्वी बंगाल और बंगाल के लेफ्टिनेंट गवर्नरों की हत्या के असफल प्रयास किए गए।

खुदीरामम बोस और प्रफुल्ल चाकी

30 अप्रैल 1908 को मिदनापुर के नवयुवक खुदीरामम बोस और प्रफुल्ल चाकी ने मुजफ्फरपुर (अब बिहार में) के जज किंग्सफोर्ड को जान से मारने के इरादे से एक बग्घी में बम से हमला किया लेकिन दुर्भाग्यवश दो अंगरेज महिलाएं मारी गयीं। प्रफुल्ल चाकी ने आत्महत्या कर ली और खुदीराम बोस को फांसी दी गई। खुदीराम बोस की शहादत के बाद भी उनका जादू बंगाल के नवयुवकों पर ऐसा सवार था कि वे अपनी धोतियों के किनारों पर खुदीराम बोस का नाम कढ़वा करने उसे लहराते हुए शान से चलते थे।

अलीपुर षड्यंत्र केस,1908

बंगाल पुलिस ने हथियारों की तलाशी के उद्देश्य से कलकत्ता और मानिकटोला में कई ठिकानों पर छापे मारे। अरविंद घोष तथा उनके भाई बारींद्र कुमार घोष सहित 34 लोगों को पकड़ कर उन पर मुकदमा​ चलाया जो अलीपुर षड्यंत्र केस के नाम से प्रसिद्ध है। एक आरोपी नरेंद्र गोसाईं सरकारी गवाह बन गया। नरेंद्र गोसाईं की जेल में ही हत्या हो गई। फ़रवरी 1909 की दो अलग-अलग घटनाओं में अलीपुर षड्यंत्र केस से संबंधित सरकारी वकील और उप पुलिस अधीक्षक की भी हत्या कर दी गई। बिना साक्ष्य के आरोपी बरी हो गए। इससे पहले कि किसी अन्य मामले में फंसाया जाता अरविंद घोष फ्रांस प्रशासित क्षेत्र पांडिचेरी चले गए।

गदर आंदोलन

लाला हरदयाल जो पंजाब प्रांत के बुद्धिजीवी थे ने विदेशों में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की अलख जगाई। उन्होंने 1913 में अमेरिका के सेन फ्रांसिस्को में गदर पार्टी का गठन किया। जिसके मुखपत्र का नाम भी गदर था। सोहन सिंह भाखना इसके सह-संस्थापक अध्यक्ष थे। गदर के पंजाबी संस्करण के संपादक 14 वर्षीय करतार सिंह सराभा थे। गदर पार्टी ने विदेशों में रहने वाले भारतीयों को भारत के स्वाधीनता संग्राम में हर तरह की सहायता प्रदान करने के लिए प्रेरित करने का काम किया। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका ने ब्रिटेन के दबाव में लाला हरदयाल को अमेरिका छोड़ने के लिए बाध्य किया। अंत: वे अपने साथियों के साथ जर्मनी चले गए और बर्लिन में भारतीय स्वतंत्रता समिति का गठन करके काम करने लगे। करतार सिंह सराभा हथियारों से लदे एक जहाज में भारत के लिए रवाना हुए परंतु अंगरेजों को इसकी भनक लग गई। जहाज पकड़ ली गयी लेकिन करतार सिंह सराभा किसी तरह भाग निकलने में सफल हो गए। उन्होंने पंजाब आ कर क्रांतिकारी गतिविधियों को संगठित करने का प्रयास किया। उसने रंगून के बलूच रेजीमेंट में विद्रोह कराने का प्रयास किया।

पंजाब में क्रांतिकारी आंदोलन

पंजाब में 1907 में क्रांतिकारी दलों का गठन हुआ। अधिकतर पंजाबी क्रांतिकारी आर्य समाजी थे। क्रांतिकािरियों में कुछ पंजाबी मुसलमान भी शामिल थे। रासबिहारी बोस ने पंजाब के क्रांतिकारियों की मदद की। गदर आंदोलन के सदस्य करतार सिंह सराभा ने रासबिहारी बोस के साथ मिलकर पंजाब में क्रांतिकारी गतिविधियों को संगठित करने का प्रयास किया। 1911 में लाहौर बम विस्फोट के मामले में अमीरचंद एवं अन्य लोगों को गिरफ़्तार हुए; उन्हें फांसी की सजा दी गई। दिल्ली में वायसराय लॉर्ड हार्डिंग की हत्या का प्रयास किया गया था।

कामा-गाटा-मारू कांड

कामा गाटा मारू एक जापानी जहाज था। इसे बाबा गुरदित्त सिंह ने किराया पर लिया। यह जहाज 372 पंजाबियों, जिनमें 351 सिख और 21 मुसलमान थे, को लेकर कनाडा रवाना हुआ। ये लोग स्वतंत्र जीवन का आनंद लेने के उद्देश्य से पराधीन भारत छोड़ कर जा रहे थे। लेकिन कनाडा की अंग्रेजी सरकार ने इन अप्रवासियों को वेंकुवर बंदरगाह में उतरने नहीं दिया। मजबूरन कामा गाटा मारू जहाज इन यात्रियों को 27, सितंबर 1914 को वापस कलकत्ता बंदरगाह लौट आया। बाबा गुरदित्त सिंह को गिरफतार करने की कोशिश की गयी पर वह बच निकले। शेष यात्रियों को एक विशेष वाहन से पंजाब वापस लाया गया। इन्होंने यह समझा कि भारत सरकार के दबाव में कनाडा में उन्हें प्रवेश नहीं दिया गया। इनकी पूरी यात्रा इतनी तकलीफ़ देह और अपमानजनक थी कि इनमें से अधिकांश क्रांतिकारी बन गये। इन्होंने लुधियाना, जालंधर तथा अमृतसर में बहुत से राजनीतिक डाके डाले।नोट – प्रत्येक फोटो प्रतीकात्मक है (फोटो स्रोत: गूगल) [ डि‍सक्‍लेमर: यह न्‍यूज वेबसाइट से म‍िली जानकार‍ियों के आधार पर बनाई गई है. EkBharat News अपनी तरफ से इसकी पुष्‍ट‍ि नहीं करता है. ]

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *